प्राथमिक स्तर, परिषदीय विद्यालय हेतु शिक्षक प्रशिक्षण से सीख - चुनौतियां एवं समाधान

“प्राथमिक स्तर, परिषदीय विद्यालय हेतु शिक्षक प्रशिक्षण से सीख - चुनौतियां एवं समाधान” — यह विषय न केवल शिक्षकों बल्कि शिक्षा-प्रशासन और समाज के लिए भी अत्यंत महत्वपूर्ण है।


प्राथमिक स्तर, परिषदीय विद्यालय हेतु शिक्षक प्रशिक्षण से सीख – चुनौतियाँ एवं समाधान


भूमिका

शिक्षा किसी भी राष्ट्र की प्रगति की आधारशिला है, और प्राथमिक शिक्षा इस नींव का प्रथम पत्थर। जब कोई बच्चा विद्यालय में प्रवेश करता है, तो वही उसका पहला सामाजिक और बौद्धिक अनुभव होता है। इस स्तर पर शिक्षण की गुणवत्ता उसके भविष्य की दिशा तय करती है। इसलिए, प्राथमिक स्तर पर कार्यरत शिक्षकों का प्रशिक्षण अत्यंत महत्वपूर्ण हो जाता है।

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परिषदीय विद्यालय (सरकारी प्राथमिक विद्यालय) ग्रामीण भारत की शिक्षा व्यवस्था की रीढ़ हैं, जहाँ देश की बड़ी आबादी शिक्षा से जुड़ती है। इन विद्यालयों के शिक्षक अनेक सामाजिक, शैक्षिक और प्रशासनिक चुनौतियों के बीच अपने दायित्वों का निर्वहन करते हैं। इस लेख में हम जानेंगे कि शिक्षक प्रशिक्षण से क्या सीख मिली है, शिक्षकों को कौन सी चुनौतियाँ हैं, और उनके समाधान क्या हो सकते हैं।


1. शिक्षक प्रशिक्षण का उद्देश्य

प्रशिक्षण का मुख्य उद्देश्य केवल शिक्षकों को जानकारी देना नहीं, बल्कि उन्हें प्रेरित, सशक्त और आत्मविश्वासी बनाना है ताकि वे बदलते शैक्षिक परिवेश में प्रभावी रूप से कार्य कर सकें।

मुख्य उद्देश्य हैं:

  • शिक्षण कौशल एवं पद्धतियों का विकास
  • बच्चों की मनोवैज्ञानिक समझ
  • मूल्य एवं नैतिकता का समावेश
  • तकनीकी (ICT) का उपयोग
  • समावेशी शिक्षा (Inclusive Education) को समझना
  • बाल-केंद्रित शिक्षण

2. शिक्षक प्रशिक्षण से मिली प्रमुख सीख

(क) बाल-केंद्रित शिक्षण दृष्टिकोण

प्रशिक्षण ने शिक्षकों को यह समझ दी है कि प्रत्येक बच्चा अलग होता है। सभी बच्चों के सीखने की गति, रुचि और समझ अलग-अलग होती है। इसलिए शिक्षण प्रक्रिया को लचीला और छात्र-केन्द्रित बनाना जरूरी है।

(ख) सक्रिय अधिगम (Active Learning)

आज शिक्षण केवल ब्लैकबोर्ड पर जानकारी देने तक सीमित नहीं रहा। शिक्षक अब बच्चों को गतिविधियों, खेलों, कहानी-कथन, समूह कार्य आदि के माध्यम से सीखने के अवसर प्रदान करते हैं।

(ग) मूल्य आधारित शिक्षा

प्रशिक्षण में ‘नैतिक मूल्यों’, ‘सह-अस्तित्व’ और ‘सामाजिक समरसता’ पर बल दिया गया है। इससे बच्चों में अनुशासन, सहयोग, और जिम्मेदारी जैसे गुण विकसित होते हैं।

(घ) तकनीकी एकीकरण (Digital Integration)

COVID-19 के बाद डिजिटल साक्षरता पर ज़ोर बढ़ा है। शिक्षक प्रशिक्षणों ने मोबाइल, स्मार्ट टीवी, और ऑनलाइन टूल्स के उपयोग की जानकारी दी है जिससे शिक्षण अधिक आकर्षक हुआ है।

(ङ) समावेशी शिक्षा

शिक्षकों को यह सिखाया गया कि किसी भी छात्र को उसकी शारीरिक, मानसिक या सामाजिक स्थिति के आधार पर अलग-थलग न किया जाए। सभी बच्चों को समान अवसर मिलना चाहिए।

(च) सतत व्यावसायिक विकास (Continuous Professional Development - CPD)

प्रशिक्षण ने यह समझ दी कि सीखना एक सतत प्रक्रिया है। शिक्षक को समय-समय पर अपनी क्षमताओं का विकास करते रहना चाहिए।


3. वर्तमान परिदृश्य में शिक्षकों के समक्ष चुनौतियाँ

(क) संसाधनों की कमी

परिषदीय विद्यालयों में अक्सर शिक्षण सामग्री, स्मार्ट क्लास उपकरण, बिजली या इंटरनेट जैसी सुविधाएँ सीमित होती हैं, जिससे प्रशिक्षण की सीख को लागू करना कठिन होता है।

(ख) विद्यार्थियों की विविधता

ग्रामीण क्षेत्रों में अलग-अलग सामाजिक पृष्ठभूमि के बच्चे आते हैं। कुछ बच्चे प्रथम पीढ़ी के शिक्षार्थी होते हैं। उन्हें विद्यालयी संस्कृति में ढालना चुनौतीपूर्ण होता है।

(ग) अभिभावक जागरूकता की कमी

कई बार अभिभावक शिक्षा के महत्व को नहीं समझते, जिससे बच्चे नियमित विद्यालय नहीं आते या घर पर अध्ययन का वातावरण नहीं मिलता।

(घ) कार्यभार और प्रशासनिक दबाव

शिक्षक केवल पढ़ाने का काम नहीं करते, बल्कि सर्वे, पोषण आहार वितरण, चुनाव कार्य आदि अतिरिक्त जिम्मेदारियों से भी जुड़े होते हैं।

(ङ) प्रशिक्षण के अनुप्रयोग में कठिनाई

कभी-कभी प्रशिक्षण अत्यधिक सैद्धांतिक होता है और वास्तविक परिस्थितियों से मेल नहीं खाता। शिक्षक को इसे जमीनी स्तर पर लागू करने में कठिनाई होती है।

(च) तकनीकी सीमाएँ

कई शिक्षकों को डिजिटल उपकरणों का सीमित ज्ञान होता है। इससे डिजिटल शिक्षा या ऑनलाइन प्लेटफॉर्म का उपयोग चुनौती बन जाता है।


4. प्रशिक्षण में सुधार की संभावनाएँ

(क) व्यवहारिक प्रशिक्षण पर बल

सैद्धांतिक ज्ञान के साथ-साथ व्यवहारिक अभ्यास, जैसे – माइक्रो टीचिंग, कक्षा प्रदर्शन, और डेमो लेक्चर – को बढ़ावा देना चाहिए।

(ख) स्थानीय संदर्भों को जोड़ना

प्रशिक्षण में स्थानीय संस्कृति, भाषा और सामाजिक उदाहरणों को शामिल किया जाना चाहिए ताकि शिक्षक इसे बच्चों तक प्रभावी ढंग से पहुँचा सकें।

(ग) निरंतर मार्गदर्शन

प्रशिक्षण के बाद भी शिक्षकों को मेंटरशिप सपोर्ट मिलना चाहिए। इससे वे नए प्रयोग कर सकेंगे और कठिनाइयों का समाधान पा सकेंगे।

(घ) डिजिटल प्रशिक्षण सामग्री

ऑनलाइन पोर्टल, जैसे DIKSHA, YouTube चैनल, या मोबाइल ऐप्स के माध्यम से शिक्षक कभी भी अपनी गति से सीख सकते हैं।

(ङ) प्रेरक और सहभागी प्रशिक्षण वातावरण

प्रशिक्षण केवल औपचारिकता न हो, बल्कि संवादात्मक और प्रेरक हो। प्रशिक्षकों को भी जमीनी अनुभव वाले शिक्षकों में से चुना जाना चाहिए।


5. समाधान की दिशा में ठोस कदम

  1. विद्यालय स्तर पर शिक्षण समुदाय (School Learning Community) बनाना चाहिए ताकि शिक्षक एक-दूसरे के अनुभव साझा कर सकें।
  2. संसाधन केन्द्र (Resource Centre) विकसित किए जाएँ जहाँ शिक्षण सामग्री, गतिविधि किट और डिजिटल उपकरण उपलब्ध हों।
  3. ब्लेंडेड लर्निंग (ऑनलाइन + ऑफलाइन) प्रशिक्षण प्रणाली लागू की जाए।
  4. प्रेरणा कार्यक्रम आयोजित किए जाएँ जिससे शिक्षक अपने पेशे को गर्व से निभाएँ।
  5. मूल्यांकन प्रणाली में सुधार — प्रशिक्षण के बाद शिक्षण प्रभाव का मूल्यांकन किया जाए ताकि सुधार के अवसर पहचाने जा सकें।

6. वास्तविक उदाहरण और सफलता की कहानियाँ

कई परिषदीय विद्यालयों ने शिक्षक प्रशिक्षण के बाद उत्कृष्ट परिणाम दिए हैं।

  • कुछ शिक्षकों ने स्थानीय खेलों को शिक्षण में शामिल किया।
  • कुछ ने डिजिटल ब्लैकबोर्ड बनाकर बच्चों की रुचि बढ़ाई।
  • कुछ विद्यालयों में सामुदायिक सहयोग से पुस्तकालय और रीडिंग कॉर्नर स्थापित किए गए।

ये उदाहरण दिखाते हैं कि यदि शिक्षक प्रशिक्षित और प्रेरित हों, तो सीमित संसाधनों में भी गुणवत्तापूर्ण शिक्षा दी जा सकती है।


7. शिक्षक की भूमिका – परिवर्तन के सूत्रधार के रूप में

शिक्षक समाज के निर्माता हैं। उनका प्रशिक्षित होना केवल शिक्षा व्यवस्था की मांग नहीं बल्कि राष्ट्र निर्माण की आवश्यकता है।
प्रशिक्षण से शिक्षक को केवल “क्या पढ़ाना है” नहीं, बल्कि “कैसे पढ़ाना है” और “क्यों पढ़ाना है” – यह समझ विकसित होती है।

एक संवेदनशील, प्रशिक्षित, और जागरूक शिक्षक अपने बच्चों में न केवल ज्ञान बल्कि जीवन-मूल्य भी बोता है।


8. निष्कर्ष

प्राथमिक स्तर के शिक्षक प्रशिक्षण ने शिक्षा जगत में सकारात्मक परिवर्तन लाया है, लेकिन अभी भी बहुत कुछ किया जाना बाकी है।
यदि प्रशिक्षण को व्यवहारिक, प्रेरक और सतत बनाया जाए तो यह परिषदीय विद्यालयों की सूरत बदल सकता है।

समाधान का मूल मंत्र यही है:

“शिक्षक को सक्षम बनाइए — वह पूरे समाज को सक्षम बना देगा।”



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