देवनागरी लिपि का विकास

लिपि की परिभाषा

लिपि (Script) वह चिह्न प्रणाली है जिसके माध्यम से भाषा की ध्वनियों (स्वर–व्यंजन) और शब्दों को लिखित रूप दिया जाता है।
👉 सरल शब्दों में — “जो बोली जाती ध्वनियों को स्थायी रूप से लिखित रूप में प्रस्तुत करे, वह लिपि है।”


विश्व की प्रमुख लिपियाँ

लिपियों को तीन प्रमुख वर्गों में बाँटा जाता है:

1. अक्षरात्मक लिपि (Alphabetic Scripts)

  • प्रत्येक ध्वनि (consonant/vowel) के लिए अलग अक्षर।
  • उदाहरण:
    • रोमन लिपि → अंग्रेज़ी, फ्रेंच, जर्मन आदि।
    • सिरिलिक लिपि → रूसी, बल्गेरियन।
    • ग्रीक लिपि → ग्रीक भाषा।
    • अरबी लिपि → अरबी, उर्दू, फ़ारसी।
    • हिब्रू लिपि → यहूदी धर्मग्रंथ।

2. अक्षर-स्वरात्मक लिपि (Alphasyllabary / Abugida)

  • प्रत्येक अक्षर में व्यंजन + अंतर्निहित स्वर (आ) शामिल होता है।
  • स्वर बदलने पर मात्राएँ जोड़ी जाती हैं।
  • उदाहरण:
    • देवनागरी → संस्कृत, हिंदी, मराठी, नेपाली।
    • बंगला लिपि → बंगाली, असमिया।
    • गुजराती लिपि
    • कन्नड़, तेलुगु, तमिल, मलयालम की लिपियाँ।

3. चित्रात्मक/प्रतीकात्मक लिपि (Logographic Scripts)

  • एक चिन्ह = एक पूरा शब्द/विचार।
  • उदाहरण:
    • चीनी लिपि (Hanzi)
    • जापानी कांजी
    • प्राचीन मिस्री चित्रलिपि (Hieroglyphics)

देवनागरी लिपि (संक्षिप्त व्याख्या)

उत्पत्ति:

  • ब्राह्मी → गुप्त → सिद्धमात्रिका से विकसित,
  • लगभग 9वीं शताब्दी ई. से प्रचलित।

विशेषताएँ:

  • यह ध्वन्यात्मक (phonetic) और अक्षर-स्वरात्मक (abugida) लिपि है।
  • अक्षरों के ऊपर शिरोरेखा (—) होती है जो शब्दों को जोड़ती है।
  • स्वर और व्यंजन का सुव्यवस्थित वर्गीकरण (कंठ्य, तालव्य, मूर्धन्य, दंत्य, ओष्ठ्य)।
  • संयुक्ताक्षर (क्ष, त्र, ज्ञ) बनाने की विशेष क्षमता।
  • स्वर चिन्हों (मात्राओं) के साथ व्यंजनों को संयोजित करने की लचीलापन।

प्रयोग:

  • संस्कृत, हिंदी, मराठी, नेपाली, कोंकणी जैसी भाषाओं में।
  • धार्मिक ग्रंथों (वेद, उपनिषद, रामायण, गीता) और आधुनिक साहित्य दोनों में।

सचमुच देवनागरी लिपि धन्य है, क्योंकि यह हर ध्वनि को सटीक रूप से लिखने की क्षमता रखती है।

अब इसके नाम की व्युत्पत्ति समझिए 👇

“देवनागरी” नाम का अर्थ

  • देव = देवता, दिव्य, श्रेष्ठ।
  • नागरी = नगर से संबंधित (अर्थात् नगरों/सभ्यता/सुसंस्कृत समाज द्वारा प्रयुक्त)।

इस प्रकार “देवनागरी” का शाब्दिक अर्थ है 👉
“देवताओं की लिपि” या “श्रेष्ठ, सभ्य समाज द्वारा प्रयुक्त लिपि”


ऐतिहासिक पृष्ठभूमि

उत्पत्ति:

  • देवनागरी लिपि की जड़ें ब्राह्मी लिपि में हैं (ईसा पूर्व 3री शताब्दी से)।
  • धीरे-धीरे ब्राह्मी से → गुप्त लिपि → सिद्धमात्रिका → और फिर विकसित होकर देवनागरी बनी।

नामकरण:

  • प्राचीन समय में इसे नागरी लिपि कहा जाता था क्योंकि यह “नागर” (नगर में बसे शिक्षित लोग) उपयोग करते थे।
  • बाद में, चूंकि इसे संस्कृत जैसी दिव्य भाषा लिखने के लिए प्रयोग किया गया, इसे “देव” (देवताओं/श्रेष्ठता) का विशेषण दे दिया गया।
  • इस तरह इसका नाम हुआ 👉 देवनागरी

महत्व

  • देवनागरी को इतना पवित्र और वैज्ञानिक माना गया कि इसे संस्कृत, हिंदी, मराठी, नेपाली समेत कई भाषाओं की आधार लिपि बनाया गया।
  • यह ध्वन्यात्मक (phonetic) है — जो बोला जाता है वही लिखा जाता है।
  • इसमें स्वरों और व्यंजनों की वैज्ञानिक व्यवस्था है (कंठ्य, तालव्य, मूर्धन्य, दंत्य, ओष्ठ्य के आधार पर)।

🔑 निष्कर्ष:
“देवनागरी” का नाम पड़ा क्योंकि यह नागरी लिपि का ही दिव्य और उन्नत रूप है, जिसे संस्कृत (देवभाषा) लिखने के लिए उपयुक्त माना गया। इसलिए इसे देवों की, श्रेष्ठ और वैज्ञानिक लिपि कहा गया।

अतः लिपि भाषा का लिखित रूप है। विश्व में अलग-अलग लिपियाँ हैं — चित्रात्मक (चीनी), अक्षरात्मक (रोमन, अरबी), और अक्षर-स्वरात्मक (देवनागरी, बंगला, तमिल आदि)।
इनमें देवनागरी सबसे वैज्ञानिक और ध्वन्यात्मक लिपि मानी जाती है, जो 1100 वर्षों से अधिक समय से अनेक भाषाओं को सशक्त आधार प्रदान कर रही है।

देवनागरी लिपि का उद्विकास

देवनागरी तक पहुँचने वाली मुख्य तीन लिपियाँ हैं 👇


1. ब्राह्मी लिपि (3री शताब्दी ईसा पूर्व से)

विशेषताएँ:

  • यह भारतीय उपमहाद्वीप की सबसे प्राचीन और मूल लिपि मानी जाती है।
  • सम्राट अशोक के शिलालेखों में ब्राह्मी लिपि के लेख मिलते हैं।
  • इसमें अक्षरों के आकार सरल और सीधी रेखाओं वाले थे (पत्थर और धातु पर लिखने के कारण गोलाई कम थी)।
  • यह लिपि अक्षरात्मक (syllabic) थी, यानी हर अक्षर व्यंजन+स्वर ध्वनि को मिलाकर बनता था।

महत्व:

  • ब्राह्मी से ही आगे चलकर लगभग सभी भारतीय लिपियों (देवनागरी, बंगला, गुजराती, कन्नड़, तमिल, तेलुगु आदि) का विकास हुआ।
  • इसे भारतीय लिपियों की जननी कहा जाता है।

2. गुप्त लिपि (4थी–6ठी शताब्दी ई.)

विशेषताएँ:

  • गुप्त साम्राज्य (चंद्रगुप्त द्वितीय, समुद्रगुप्त आदि) के समय प्रयुक्त हुई।
  • ब्राह्मी से ही विकसित, लेकिन अक्षरों में गोलाई और अलंकरण आने लगे।
  • इस समय लेखन माध्यम तालपत्र और भोजपत्र जैसे मुलायम साधन बन गए थे, इसलिए रेखाएँ अधिक गोलाकार हो गईं।
  • स्वरों और व्यंजनों की पहचान और स्पष्ट हो गई।

महत्व:

  • गुप्त लिपि को “ब्राह्मी और नागरी के बीच का पुल” कहा जाता है।
  • संस्कृत ग्रंथों और धार्मिक लेखन में इसका खूब प्रयोग हुआ।
  • इससे धीरे-धीरे क्षेत्रीय भिन्नताएँ निकलकर सिद्धमात्रिका, नागरी और शारदा लिपि बनीं।

3. सिद्धमात्रिका (या सिद्धम) लिपि (6ठी–9वीं शताब्दी ई.)

विशेषताएँ:

  • गुप्त लिपि से विकसित हुई।
  • अक्षरों के आकार और रेखाएँ अधिक नियमित और संतुलित हो गईं।
  • इसमें रेखा (मात्रा) का प्रयोग शुरू हुआ जो आगे चलकर देवनागरी की पहचान बनी — ऊपर की क्षैतिज रेखा (शिरोरेखा)।
  • संस्कृत ग्रंथों और विशेषकर बौद्ध धर्म के सूत्रों को लिखने में प्रयुक्त।
  • चीन, जापान तक जब बौद्ध ग्रंथ गए तो उनके साथ सिद्धम लिपि भी पहुँची।

महत्व:

  • सिद्धमात्रिका से ही आगे चलकर देवनागरी का जन्म हुआ।
  • इसका स्वरूप इतना व्यवस्थित था कि इसे देवनागरी की सीधी पूर्वज लिपि कहा जाता है।

4. देवनागरी लिपि (9वीं शताब्दी ई. से अब तक)

  • सिद्धमात्रिका से विकसित हुई।
  • अक्षरों के ऊपर शिरोरेखा (—) जोड़ दी गई जो शब्दों को एक सूत्र में बाँध देती है।
  • इसमें ध्वनियों का वर्गीकरण (कंठ्य, तालव्य, मूर्धन्य, दंत्य, ओष्ठ्य) सुव्यवस्थित हुआ।
  • संस्कृत, हिंदी, मराठी, नेपाली समेत कई भाषाएँ इसी लिपि में लिखी जाती हैं।

इसके अलावा देवनागरी लिपि लगभग 9वीं शताब्दी ईस्वी (लगभग 800–900 ईस्वी) के आसपास सिद्धमात्रिका लिपि से विकसित होकर सामने आई थी।

👉 यानी आज (2025 तक) इसे चले हुए लगभग 1100–1200 साल हो चुके हैं


देवनागरी के कालक्रम को सरल रूप में देखें:

  • ईसा पूर्व 3री शताब्दी → ब्राह्मी लिपि (अशोक काल)
  • 4थी–6ठी शताब्दी ई. → गुप्त लिपि
  • 6ठी–9वीं शताब्दी ई. → सिद्धमात्रिका (देवनागरी की सीधी पूर्वज)
  • 9वीं शताब्दी ई. से अब तक → देवनागरी लिपि

क्यों इतनी स्थायी रही देवनागरी?

  1. ध्वन्यात्मकता (Phonetic Nature) → बोली गई ध्वनि को जैसे बोला वैसे ही लिखा जा सकता है।
  2. शिरोरेखा (Headline) प्रणाली → शब्दों को एक सूत्र में बाँधकर पढ़ना आसान बना देती है।
  3. वैज्ञानिक क्रम → व्यंजनों का वर्गीकरण (कंठ्य, तालव्य, मूर्धन्य, दंत्य, ओष्ठ्य) पूरी तरह व्यवस्थित है।
  4. अनुकूलन क्षमता → संस्कृत, हिंदी, मराठी, नेपाली जैसी अनेक भाषाओं के लिए उपयुक्त।
  5. धार्मिक और सांस्कृतिक महत्त्व → संस्कृत ग्रंथ, वेद, उपनिषद, योगशास्त्र, ज्योतिष आदि इसी में लिखे गए।

अतः देवनागरी लिपि केवल एक लेखन प्रणाली नहीं, बल्कि यह 1100 साल से अधिक समय से भारत की सांस्कृतिक, धार्मिक और भाषाई धरोहर की रीढ़ रही है।


देवनागरी लिपि के उद्विकास की संक्षिप्त विकास-श्रृंखला यह है - ब्राह्मी (अशोक काल) → गुप्त (गुप्त साम्राज्य) → सिद्धमात्रिका (बौद्ध/संस्कृत ग्रंथ) → देवनागरी (9वीं शताब्दी से अब तक)

हिन्दी भाषा की कुछ अन्य विशेषताएं

✅👉 हिंदी (और संस्कृत से निकली देवनागरी लिपि) ध्वन्यात्मक (phonetic) लिपि है। इसका मतलब है कि इसमें हर ध्वनि (sound) के लिए एक निश्चित अक्षर या मात्रा होती है। इस कारण से हिंदी में बोले गए लगभग सभी शब्दों को हूबहू उसी तरह लिखा जा सकता है जैसे वे उच्चारित होते हैं।

👉 अंग्रेज़ी इसके उलट है। अंग्रेज़ी में ध्वनि और अक्षर का सीधा मेल नहीं है। उदाहरण के लिए:

  • “put” और “but” – लिखावट में समानता है लेकिन उच्चारण अलग।
  • “phone” में ph = “फ”, जबकि “photo” में ph भी “फ”।
  • अंग्रेज़ी में कई ध्वनियों के लिए अलग अक्षर ही नहीं हैं, जैसे “ण”, “ङ”, “ख़”, “ज़” इत्यादि।

इसलिए:

  • अंग्रेज़ी के शब्दों को हिंदी में लिखा जा सकता है (जैसे – “school” → “स्कूल”)।
  • लेकिन हिंदी के सभी शब्द अंग्रेज़ी में हूबहू नहीं लिखे जा सकते। अंग्रेज़ी लिपि को हिंदी के ध्वनियों का पूरा प्रतिनिधित्व नहीं मिलता। इसलिए “कर्म”, “ज्ञान”, “षट्कोण”, “ख़ुशबू” आदि शब्द अंग्रेज़ी में लिखने पर उनका सही उच्चारण खो जाता है।

हिंदी की ध्वनियाँ जो अंग्रेज़ी में ठीक से नहीं लिखी जा सकतीं

ध्वनि/अक्षर (हिंदी) उच्चारण का प्रकार अंग्रेज़ी में लिखने की स्थिति उदाहरण शब्द (हिंदी) अंग्रेज़ी में लिखने पर समस्या
अ (अल्पप्राण) और आ स्वर कभी-कभी a, aa से लिखते हैं, पर ध्वनि पूरी नहीं मिलती अग्नि, आग “Agni” → सही, लेकिन “Aag” का खिंचाव नहीं दिखता
ऋ (ऋकार) स्वर अंग्रेज़ी में ध्वनि अनुपस्थित, ri/ru से दिखाते हैं ऋषि “Rishi” लिखते हैं, पर असली “ऋ” नहीं आता
ङ (ङकार) अनुनासिक कोई अक्षर नहीं, ng/nk से काम चलाते हैं गंगा “Ganga” लिखते हैं, असल में यह “ङ्ग” है
ञ (ञकार) तालव्य अनुनासिक अंग्रेज़ी में नहीं ज्ञान “Gyaan” लिखते हैं, पर “ञ” की ध्वनि खो जाती है
ट, ठ, ड, ढ, ण मूर्धन्य (retroflex) अंग्रेज़ी में सीधे चिन्ह नहीं टमाटर, ठंडा, डमरू, ढोल, गणेश “T, Th, D, Dh, N” लिखते हैं, पर जीभ की मूर्धा ध्वनि (retroflex) नहीं आती
श, ष, स तीन अलग ध्वनियाँ अंग्रेज़ी में सभी को “sh” या “s” से लिखते हैं शेर, षट्कोण, समय “Shatkon” → “ष” खो जाता है
ज़, ग़, ख़, फ़ अरबी/फ़ारसी से आए अंग्रेज़ी में केवल Z, G, Kh, F से दिखाते हैं ज़मीन, ग़रीब, ख़ुशबू, फ़रिश्ता असली उर्दू/फ़ारसी ध्वनि नहीं आती
ह़ (अलग उच्चारण) हल्की ध्वनि अंग्रेज़ी में सिर्फ h अहंकार “Ahankar” लिखते हैं, पर nasalisation नहीं आता
अनुस्वार (ं) और अनुनासिक (ँ) नाक से निकली ध्वनि अंग्रेज़ी में “n, m” या “ñ” से काम चलाते हैं चाँद, रंग “Chaand, Rang” → नाक की गूंज ठीक नहीं
विसर्ग (ः) श्वास ध्वनि अंग्रेज़ी में नहीं दुःख “Dukh” → असली ध्वनि खो जाती है

👉 निष्कर्ष:
हिंदी (देवनागरी) लिपि सटीक रूप से उच्चारण के अनुरूप है। अंग्रेज़ी लिपि में कई ध्वनियाँ अनुपस्थित या अपूर्ण हैं, इसलिए हिंदी शब्दों को अंग्रेज़ी में हूबहू लिखना असंभव है।

यही कारण है कि हिंदी लिपि को ध्वनि-संपूर्ण (phonologically complete) और अंग्रेज़ी को ध्वनि-अपूर्ण (phonologically incomplete) माना जाता है।


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